बुधवार, 4 नवंबर 2009

मुझे तलाश है ऐसे लेखक की जिसमें इन्सान हो

आज़ादी के बाद हिन्दी साहित्य में आ रहे परिवर्तन में सबसे खास परिवर्तन खेमेबाजी है । शक्तिसम्पन्न और बौद्धिक संवर्ग ने अपने अपने अलग अलग खेमे बना लिए है । इन अलग अलग खेमों में बंटे लेखकों और कवियों की विचारधारा भी अलग अलग ही है । बौद्धिक और शक्तिसम्पन्न लेखकीय समुदाय ने अपने खेमे से पृथक किसी अन्य को लेखक मानने से ही इन्कार कर दिया है। उत्तर आधुनिक लेखक अब तक पूर्णतः आधुनिक नहीं हुए है किन्तु वे सारे के सारे उत्तर औधुनिक का अलाप,अलाप रहे हैं । रचनात्मकता में विचारधारा के सम्मोहन का तड़का लगाया जा रहा है । उत्तर आधुनिक के नाम पर काव्य और गद्य में भी अकाव्यात्मकता एवं अगद्यात्मकता का पुट लगाया जा रहा है । इस तरह की रचनाएं की जा रही है,जिसका सामान्य पाठक वर्ग से कोई सारोकार नहीं है । खेतों में काम करनेवाले,सड़क किनारे काम करनेवाले मजदूर,कारखानों में कार्यरत वर्कर्स अगद्यात्मक और अकाव्यात्मकता को आत्मसात करने में असमर्थ तो है ही साथ ही इस प्रकार की रचनाओं से न तो व्यक्ति को,न परिवार को, न समाज को और ना ही देश को लाभ पहुंचता है। हां,रचनाकार अवश्य ही खेमेबाजी में बाजी मारकर अनावश्यक तौर पर पुरस्कार सम्मान प्राप्त कर ले जाते है । इसका भी कारण है,उत्तर आधुनिक के नाम पर रचनाकार खेमों के ही सम्पादकों और आलोंचकों को खुश करने के लिए लिखते हैं । उत्तर आधुनिकता के नाम पर लिखा जानेवाला साहित्य न तो समाज के और न ही देश के हित में है । मैं यहां किसी की आलोचना या निन्दा नहीं कर रहा और ना ही अपने गाल बजा रहा हूं किन्तु वास्तविकता यही है कि एक शक्तिसम्पन्न वर्ग सामान्य पाठकों के सामने केवल बौद्धिक कचना परोसकर वाह वाही लुटने में संलग्न है ।
भवानी प्रसाद ने लिखा है,रचना इस तरह से लिखी जानी चाहिए,जिस तरह से रचनाकार सरल होता है । रचनाकार कठिन होगा तो रचना भी कठिन होगी और उसका जनता,समाज या देश से प्रत्यक्षतः कोई सरोकार नहीं होगा । आज यही हो रहा है । यही कारण है कि समाज बौद्धिकता से उब कर सिनेमा की ओर जा रहा है । पुस्तकें नहीं बल्कि टीव्ही और सिनेमा का क्रेज बढ़ता जा रहा है ।......------------------.आज स्थिति दयनीय हो गई है। एक खेमे का रचनाकार दूसरे खेमे के रचनाकार को बरदाश्त नहीं करता । इतना ही नहीं प्रसिद्ध रचनाकारों का रवैया असामजिक हो गया है । माना जाता है कि लेखक.रचनाकार संवेदनशील होता है किन्तु यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि बौद्धिक लेखक संवेदनशील नहीं होता । इसे यों भी कहा जा सकता है कि एक अच्छा लेखक उतना अच्छा इन्सान नहीं होता,भले ही एक अच्छा इन्सान अच्छा लेखक न हो । एक अच्छा लेखक भले ही मिल जाए किन्तु वह एक अच्छा इन्सान हो,यह जरूरी नहीं है । एक कोई अवश्य ऐसा लेखक होगा किन्तु उसकी पहुंच उतनी अच्छी नहीं होगी जितनी उसे चाहिए । अच्छे लेखक के साथ अच्छा इन्सान होना बड़े सौभाग्य की बात है । आजकल के लेखक कवि रचनाकार इतने ज्यादा बौद्धिक हो गए है कि वे ज़मीन पर तो चलते ही नहीं है बल्कि वे आसमान में उड़ने लगते है । वे पत्रोत्तर देना अपनी तोहिन समझते हैं ।-------------.मैंने अब तक कई लेखको को पत्र लिखे हैं । उन्हें अपनी पुस्तकें भेजी है,दी है किन्तु दुःख की बात है कि उनमें से अब तक हरिवंशराय बच्चन,विष्णुप्रभाकर,कमलाप्रसाद,विजयबहादरसिंह आदि ने ही पत्रों का जवाब दिया बाकी किसी ने भी नहीं । यहां यह भी कहना उचित होगा कि भले ही उनकी सूची में मैं नहीं हूं । सूची में आने के लिए शायद उनकी शर्तें पूरी न कर पाया हूं । कई लेखक तो ऐसे है कि उनकी तारीफों में बड़े लेखकौं ने जाने कितने कशीदे रच डालें किन्तु उनमें लेखक तो है किन्तु उनमें इन्सान ही नहीं है ।

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कृष्णशंकर सोनाने दूरभाषः 07554229018,चलितवार्ताः 09424401361 Email:drshankarsonaney@yahoo.co.uk प्रकाशित कृतियां-वेदना,कोरी किताब,बौराया मन,संवेदना के स्वर,दो शब्दों के बीच,धूप में चांदनी,मेरे तो गिरधर गोपाल,किशोरीलाल की आत्महत्या,निर्वासिता..गद्य में उपन्यास.1.गौरी 2.लावा 3.मुट्ठी भर पैसे 4.केक्टस के फूल 5.तलाश ए गुमशुदा,....आदिवासी लोक कथाएं,कुदरत का न्याय.बाल कहानी संग्रह,क्रोध,