सोमवार, 14 सितंबर 2009

आटे से सने हुए हाथ--कविता -नरेन्द्र गौड़




तालाब को आना था

समुद्र चला आया

कविता में ।

गिद्ध नहीं आया

हांफती हुई चिड़िया

चली आई

फड़फड़ाने लगा पेड़

हरी भरी पत्तियां

गिरने ही थे..

कैसे बीन लेता अकेला

ढेर सारे फूल ।

माफ करना छोटी बिटिया को

चली आई

कविता में ।

अरी सुनती हो....

ज़ौर से आवाज़

लगी ही तो दी खुशी में

चली आई वह भी

आटे से सने हुए हाथ लिए

कविता में ।
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डरी हुई दुनिया

उसने अपनी आंखें

डरी हुई दुनिया में खोली

उसने इत्मीनान से

अपना बस्ता खोला तब भी

डरी हुई दुनिया थी

उसके चारों तरफ

एक चाकलेट निकाली उसने

डरी हुई दुनिया को

बहलाने के लिए

रंगों की डिबिया भी

निकाल चुकी तब

उसने एक मरी हुई

तितली निकाली

उसका इरादा डरी हुई

दुनिया को और

डराने का नहीं था ।
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बस्ता

समय हो गया

चलो घर चलें

स्कूल की घंटी

लगातार बज रही

तुमने मुझे कल

मोर का पंख

परसों इमली और

आज अपने हिस्से का

खाना दिया

ए दुबली पतली लड़की

ला मैं तरा

भारी भरकम

बस्ता उठा लूं।
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टूटा बटन

मेरे कुर्ते का

टूटा बटन

टांकने के लिए आखिर

उसे सुई धागा नहीं मिला।

समय नहीं ठहरा

कुर्ते के टूटे बटन के लिए

अपनी जगह रही

मेरी तसल्ली

सुई धागा तलाशती वह

गहरे संताप में

वहीं छूट गई।

बिना बटन के ही

वह कुर्ता पहना

पहना इतना

आगे पहनने लायक

नहीं रहा।

मेरे पास वहीं एक

कुर्ता था

जिसकी जेब में

तमाम दुनिया को

रखे घुमता था।

रात को

मेरे सीने पर वह

सिर टिकाए रहती है

टूटा बटन खोजती अपनी

अंगुलियों के साथ।
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नरेन्द्र गौड़
mobile No.9826548961

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कृष्णशंकर सोनाने दूरभाषः 07554229018,चलितवार्ताः 09424401361 Email:drshankarsonaney@yahoo.co.uk प्रकाशित कृतियां-वेदना,कोरी किताब,बौराया मन,संवेदना के स्वर,दो शब्दों के बीच,धूप में चांदनी,मेरे तो गिरधर गोपाल,किशोरीलाल की आत्महत्या,निर्वासिता..गद्य में उपन्यास.1.गौरी 2.लावा 3.मुट्ठी भर पैसे 4.केक्टस के फूल 5.तलाश ए गुमशुदा,....आदिवासी लोक कथाएं,कुदरत का न्याय.बाल कहानी संग्रह,क्रोध,